M.P. Water and Land Management Institute
(WALMI), Bhopal

(A premiere autonomous training institute, working as a part of Panchayat and the Rural Development Department, Govt. of M.P.)

Projects

संस्थान द्वारा जल संसाधन विभाग की कैडवम परियोजनाओं का थर्(धषपार्टी कॉन्करंट मूल्यांकन का कार्य किया जा रहा है | प्रथम चरण में मार्च 2049 तक 5 परियोनाओं का मूल्यांकन कार्य पूर्ण कर लिया गया है। यह परियोजनायें सगड़ जिला विदिशा, संजय सागर बाह जिला विदिशा, माही जिला धार, बरियापुर जिला छतरपुर एवं सिंध फेज-2 जिला शिवपुरी हैं। द्वितीय चरण में जल संसाधन विभाग की 5 कैडवम परियोजनाओं का थर्डपार्टी कॉन्करंट मूल्यांकन का कार्य प्रगतिरत है। यह परियोजनाएं सिंहपुर जिला छतरपुर, महुअर जिला शिवपुरी, महान जिला सीधी, पेंच जिला सिवनी एवं बाणसागर जिला शहडोल है | इन मूल्यांकन कार्यों की रिपोर्ट जल संसाधन विभाग के माध्यम से भारत शासन को प्रेषित की जायेगी ।

संस्थान द्वारा अपने कार्यक्षेत्र को अधिक व्यापक एवं प्रभावी बनाने की दृष्टि से विभिन्‍न महाविद्यालयों के छात्र/ छात्राओं हेतु अनिवासीय इंटर्नशिप कार्यकम 44 जून, 2048 से 40 जुलाई 2048 की अवधि में आयोजित किया गया था। इस कार्यकम में उच्च शिक्षा उत्कृष्टता संस्थान, लक्ष्मीनारायण कॉलेज ऑफ टेक्नालॉजी एवं ओरिन्टल कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के 24 छात्र, छात्राओं द्वारा विभिन्‍न विषयों पर फील्डवर्क एवं प्रायोगिक कार्य किये गये | उनके द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन संस्थान की विभिन्‍न गतिविधियों को सुदृढ़ करने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं।

वर्ष 2015-16 में म.प्र. जल एवं भूमि प्रबंध संस्थान, भोपाल द्वारा म.प्र. शासन के उद्यानिकी एवं प्रक्षेत्र वानिकी विभाग के नवनियुक्त ग्रामीण उद्यान विस्तार अधिकारियों हेतु 1 माही विशेष प्रशिक्षण आयोजित किये जा रहे हैं। 7 बेचों में संपादित किये जा रहे इन प्रशिक्षणों का मुख्य उद्देश्य प्रशिक्षण के प्रतिभागियों को उद्यानिकी संबंधित अद्यतन तकनीकी जानकारी प्रदाय करना, प्रदेश में उद्यानिकी के क्षेत्र का विस्तार करना एवं कृषकों को हायटेक हार्टिकल्चर की ओर प्रेरित किया जाना है, ताकि कृषि को लाभ का व्यवसाय बनाया जा सके। इन 1 माही प्रशिक्षणों में 15 दिवस कक्षागत प्रशिक्षण आयोजित किये गये, जिसमें उद्यानिकी के विभिन्न विषयों जैसे फल, सब्जी, पुष्प, मसाला फसलों, औषधीय एवं सुगंधित पौधों की अद्यतन उत्पादन एवं संरक्षण तकनीकें, प्रसंस्करण, मार्केटिंग, टिश्यूकल्चर, संरक्षित खेती, जल एवं भूमि प्रबंधन इत्यादि तकनीकी विषयों पर जानकारी देने के साथ-साथ कार्यालयीन प्रबंधन एवं कम्यूनिकेशन स्कील संबंधित व्याख्यान आयोजित किये गये। शेष 15 दिवस में उद्यानिकी क्षेत्र में किये जा रहे सफल एवं वैज्ञानिक कार्यों की जानकारी प्रदाय करने हेतु प्रदेश एवं महाराष्ट्र राज्य के विभिन्न स्थानों का भ्रमण करवाया गया। मुख्य रूप से एन.आई.पी.एफ. टी, तलेगॉव, जैन इरिगेशन जलगाँव, कृषि विद्यापीठ राहुरी, रालेगॉव सिद्धी, हिवड़े बाजार, राजगुरुनगर, महाबलेश्वर, पूना कृषि महाविद्यालय, कृषि महाविद्यालय खंडवा में हायटेक हार्टिकल्चर क्षेत्र में किये जा रहे सफलतम प्रयासों को दर्शाया गया। साथ ही इन क्षेत्रों में ऐसे कृषकों के प्रक्षेत्रों का भी भ्रमण करवाया गया जो हायटेक हार्टिकल्चर अपना चुके हैं। प्रतिभागियों द्वारा इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों को अत्यन्त लाभप्रद बताया गया एवं उनके क्षेत्र में प्रशिक्षणों से प्राप्त जानकारी का प्रचार प्रसार एवं अपनाने हेतु सार्थक प्रयास किये जाने का विश्वास दिलाया गया है। इन प्रशिक्षणों में अबतक 250 नवनियुक्त ग्रामीण उद्यान विस्तार अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है।

संस्थान द्वारा आईडब्ल्यूएमपी परियोजनाओं में कार्यरत वाटरशेड हेव्हलपेंट टीम के सदस्यों हेतु “हाइड्रोलॉजी के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए संरचनाओं के चयन व डिजाइन” विषय पर कृषि जलवायु, चयन, टोपोग्राफी, भूआकृति को ध्यान में रखते हुए लिए जा सकने वाले वाटरशेड विकास कार्यों के विकल्प उनके चयन, डिजाइन, प्लानिंग इत्यादि के संबंध में संदर्भ साहित्य तैयार करने का किया गया | संस्थान को उक्त कार्य राजीव गांधी वाटर शेड मिशन द्वारा सौपा गया था। यह कार्य संस्थान की जल संसाधन एवं अभियांत्रिकी संकाय के अंतर्गत किया गया | इस साहित्य को तैयार करने हेतु राजीव गांधी वाटरशेड मिशन द्वारा 2.22 लाख का भुगतान संस्थान को किया गया।

संस्थान द्वारा विश्व बैंक पोषित एमपीडब्ल्यूएसआरपी परियोजना के अंतर्गत जल संसाधन विभाग से हुए अनुबंध के अंतर्गत 07 जल संसाधन संभागों में चुनिंदा 426 जल उपभोक्ता संथाओं व उनसे संबंधित जल संसाधन विभाग के प्रक्षेत्र स्तरी अमले हेतु प्रक्षेत्र स्तर पर क्षमतावर्धन गतिविधियों ली गई | कार्य की अनुबंधित राशि रू. 269 लाख थी तथा यह कार्य जून 2045 तक पूर्ण किया जाना था। इस अनुबंध अंतर्गत 00 जल संसाधन संभागो, (विदिशा, दमोह, मुरैना, उज्जैन, देवास, बालाघाट व सतना) में चुनिंदा जल उपभोक्ता संथाओं को छ: दिवसीय प्रशिक्षण दिया गया । इस हेतु अभियांत्रिकी, कृषि व समाज विज्ञान के विशेषज्ञों के दलों का गठन किया गया प्रक्षेत्र स्तरीय प्रक्षेत्र पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों के क्रियान्वयन विषय वस्तु विशेषज्ञों के 07 दलों द्वारा किया गया। इन कार्यकमों में जल संसाधन संभाग स्तर पर 202 तथा जल उपभोक्ता संथा स्तर पर कुल 202 प्रशिक्षणार्थियों को प्रशिक्षण दिया गया। यह कार्य संस्थान की जल संसाधन एवं अभियांत्रिकी संकाय के अंतर्गत किया गया।

संस्थान द्वारा सलाहकारिता, कार्यों के अंतर्गत नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण हेतु ओंकारेश्वर सागर सिंचाई परियोजना की कमाण्ड क्षेत्र विकास योजना तैयार की गई | यह कार्य जल संसाधन मंत्रालय भारत शासन द्वारा जारी की गई विस्तृत मार्गदर्शिका के अनुरूप किया गया जिसमें विशेष रूप से पर्यावरणीय पहलुओं का परिपालन भी सुनिश्चित किया जाना था। इस योजना को जलीय विवरणों, मृदा, टोपोग्राफी, यांत्रिकी सर्वेक्षण, भूजल स्थिति, अधोसंरचनात्मक, सामाजिक आर्थिकी कृषि इत्यादि पहलुओं के आधार पर तैयार किया गया है। उक्त कार्य का सलाहकारिता शुल्क रूपये 55 लाख था जिसे वर्ष 2040 मे पूर्ण किया गया। शासन द्वारा तैयार की गई योजना का अनुमोदन किया गया है।

झील संरक्षण प्राधिकरण द्वारा यूएनहेबिटेट के अंतर्गत ली गई परियोजना हेतु प्रदेश के चार शहरों हेतु जी.आई.एस.आधारित रन ऑफ मॉडल का विकास किया जाना था । उक्त कार्य संस्थान द्वारा किया गया। इस कार्य के अंतर्गत प्रदेश के चार प्रमुख शहरों, इन्दौर, भोपाल, ग्वालियर तथा जबलपुर हेतु जी.आई.एस.आधारित शहरीय रन ऑफ मॉडल का विकास किया गया |

संस्थान द्वारा कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी (७7४५) पर एक सलाहकारिता अध्ययन किया गया। यह कार्य राज्य कृषि विस्तार एवं प्रशिक्षण संस्थान, भोपाल द्वारा संस्थान को सौंपा गया था । अध्ययन के अन्तर्गत 43 जिलों को सम्मिलित किया गया था। सलाहकारिता अध्ययन हेतु आवंटित राशि रू. 6.34 लाख थी। आत्मा परियोजना के तहत किये जाने वाले विभिन्‍न कार्यो के उद्देश्य निम्नानुसार थे :- *« कृषि विकास में संलग्न कृषि समुदाय के लोगों की आवश्यकता को पहचानना | * प्रक्षेत्र व कृषि विकास की प्राथमिकताओं का निर्धारण करना | *« कृषि विकास से जुड़ी योजनाओं को विभिन्‍न शास्रकीय विभागों व अशासकीय संगठनों के माध्यम से कियान्वित करना।

भारत सरकार ने जल रुसाउन संत्रालय द्वारा कृषि क्षेत्रों में जल उपयोग दक्षता बढ़ाने एवं जल की प्रत्येक बूँद से अधिक से अधिक पैदादार प्राप्त करने के उद्देश्य से देश के विभिन्‍न राज्यों में ““कृषक सहभागी कियात्मक अनुसंधान कार्यक्रम” चयनित शासकीय / अर्द्धशासकीय एवं अशासकीय संस्थाओं द्वारा कियान्वित किया जा रहा है | मध्यप्रदेश जल एवं भूमि प्रबंध संस्थान (वाल्मी) भोपाल का चयन जल संसाधन मंत्रालय, मार्त सरकार द्वारा इस महत्वपूर्ण योजना के कियान्वयन हेतु किया गया है एवं संस्थान द्वारा वर्ष 2008 से 200 अवधि में एफ.पी.ए.आर.पी. फेस १ के अन्तर्गत प्रदेश के 09 जिलों में विभिन्‍न तकनीकों पर लगमण 400 कियात्मक अनुसंधान प्रयोग सफलतापूर्वक संपादित किये गये। संस्थान द्वारा कियान्वित किये गये प्रथम चरण कार्यकम की सफलता को देखते हुये भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय द्वारा एफ.पी.ए.आर.पी. फेस 2 के अन्तर्गत योजना के कियान्वयन हेतु संस्थान का पुनः चयन किया गया एवं निम्न तकनीकों पर 80 क्रियात्मक अनुसंघान प्रयोग स्वीकृत किये गये। जिसमें निम्नलिखित तकनीकों पर प्रशिक्षण प्रदान किया गया :-
  • लिफ्ट सिंचाई क्षेत्रों में सामुदायिक फव्वारा पद्दति द्वारा सिंचाई
  • ड्रिप सिंचाई प्रणाली का विभिन्न फसलों में उपयोग
  • जल उपयोग दक्षता बढ़ाने हेतु मेढ़ कूड़ सिंचाई पद्वति का उपयोग
  • जल संरक्षण हेतु प्लास्टिक एवं स्टबल पलवार का उपयोग

रबी 2011-12 में वाल्मी, भोपाल द्वारा ये प्रयोग प्रदेश के 08 जिलों - मंदसौर, रतलाम, खंडवा, छिन्दवाडा. देवास, हरदा, होशंगाबाद एवं धार के गांवों में कियान्वित किये गये एवं इन क्रियात्मक अनुसंधान प्रयोगों का प्रतिवेदन भेजा जा चुका है। कार्यक्रम हेतु भारत शासन द्वारा रू. 50,000/- प्रति प्रयोग की दर से रू. 40.0 लाख की राशि उपलब्ध कराई गई। चयनित जिलों में जल साक्षरता कार्यक्रम के अन्तर्गत विभिन्न कृषक प्रशिक्षण भी आयोजित किये गये, जिनका उद्देश्य कृषि क्षेत्रों में जल उपयोग दक्षता बढ़ाने की विभिन्न तकनीकों का प्रचार प्रसार करना था।

संस्थान ने भोज वेटलैंड परियोजना के अंतर्गत 'छियो फिजिकल एंड जियो हाईड्रोलाजिकल स्टडी आफ अपर लेक” का अध्ययन कार्य निष्पादित किया गया।

भारत सरकार, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा संस्थान को छोर घाटी बेतवाकछार में स्थित प्राचीन जल संग्राहको एवं सहायक धाराओं की संभावनाओं की छोज के लिये सू-जल पर्यावरणीय अन्वेषण का कार्य वाल्मी को सौंपा था, जिसके अंतर्गत पुराने बॉच को जस्ते डाली घाराओं की खोज, भू-जल पुर्नभरण, तथा पर्यावरण की स्थिति के सुधार का उददेश्य सन्निहित था। संस्थान डारा उक्त परियोजना कार्य पूर्ण कर प्रतिवेदन भारत सरकार की ओर प्रेषित किया गया।

संस्थान द्वारा जबलपुर जिले के कुंड ब्लाक में लघु आदिवासी कृषक उद्वहन सिंचाई परियोजना जो परियार नदी पर स्थित है, के संछालर ने क्रियाशील कृषक संगठनों की सामाजिक आर्थिकी का अध्ययन किया गया |

चंबल परियोजना के सैंच्य क्षेत्र लें गोहद एवं जौरा में लवणीय एवं क्षारीय भूमि के सुधार में मोलेसस का उपयोग कर भूमि सुधार कार्यक्रम संस्थान द्वारा चलाया गया था।

सिंचित क्षेत्र में पलेवा हेतु आवस्यक जलमात्राओं के निर्धारण के लिये संस्थान द्वारा सम्राट अशोक सागर परियोजना के सैंच्च क्षेत्र में पलेदा हेतु सिंचाई जल आधारित परियोजना कार्य संपादित किया गया।

सम्राट अशोक सागर सिंचाई परियोजना के संदर्भ में परियोजनोत्तर कार्य निष्पादन समीक्षा अध्ययन केन्द्रीय जल आयोग नई-दिल्‍ली, जल संसाधन मंत्रालय भारत शासन द्वारा संस्थान को सौंपा गया कार्य पूर्ण किया गया।

राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम अंतर्गत बड़वानी जिले का पर्सपेक्टिव प्लान तैयार किया गया ।

भारत सरकार के कृषि मंत्रालय की योजनान्तर्गत मेनेज. हैदराबाद से प्राप्त वित्तीय सहयोग से प्रदेश के बेरोजगार कृषि स्नातकों हेतु 2 माह के “कृषि क्लीनिक एबं कृषि बिजनेस” प्रशिक्षण कार्यकम आयोजित किये गये। इन प्रशिक्षणों में कृषि आधारित व्यवसाय निर्मित करने हेतु विभिन्‍न क्षेत्रों पर जानकारी प्रदाय की गई एवं इस हेतु बैंक ऋण सुविधा उपलब्ध कराने हेतु भी कार्यवाही की गयी ताकि ये बेराजगार कृषि स्नातक स्वयं का कृषि बिजनेस एवं-कृषि क्लीनिक स्थापित कर रोजगार प्राप्त कर सकें | संस्थान द्वारा इस तरह के 03 दो माही प्रशिक्षण आयोजित किये गये ।

संस्थान द्वारा कृषि विभाग की पहल पर प्रदेश के धार, झाबुआ एवं रतलाम जिलों हेतु चलाये गये डेनिडा सहायतित समन्वित जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन कार्यक्रम की ग्रामस्तरीय संस्थाओं के प्रभाव का आंकलन पर विशिष्ट अध्ययन धार, झाबुआ एबं रतलाम जिलों हेतु वर्ष 2003 में किया गया।

विकास आयुक्त कार्यालय ग्रामीण विकास विभाग द्वारा संचालित जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन कार्यक्रम के मध्यवर्ती एवं अंतिम मूल्यांकन करने हेतु संस्थान को चिन्हांकित किया। संस्थान को आवंटित समस्त परियोजनाओं का संस्थान द्वारा मूल्यांकन कर प्रतिवेदन प्रस्तुत किये गये।

म.प्र. शासन ग्रामीण विकास द्वारा संचालित पानी रोको अभियान के मुल्यांकन का कार्य संस्थान को सौंपा गया था। संस्थान ने शासन की अपेक्षानुसार 09 जिलों का मूल्यांकन कर पानी रोको अभियान को सुदृढ़ करने हेतु प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया।

सैंच्य क्षेत्र विकास कार्यक्रम के अंतर्गत बारना परियोजना के रमगढ़ा उद्‌वहन सिंचाई प्रणाली में लगभग 402 एकड़ हेतु समुदाय आधारित फव्वारा सिंचाई प्रणाली को कृषकों को उपलब्ध कराया गया।

चंबल परियेजना के संचालन हेतु संस्थान द्वारा चंबल परियोजना के अनुरक्षण एवं प्रबंधन पर एक विशिष्ट अध्ययन सैंच्य क्षेत्र विकास प्राधिकरण की पहल पर संपन्न कराया गया।

संस्थान द्वारा क्रियात्मक अनुसंधान गतिविधियों को यू.एस.ए.आई.डी. की वित्तीय सहायता से वर्ष 988 में आरंभ किया गया था। इसके अंतर्गत हलाली सिंचाई परियोजना, बारना सिंच परियोजना, तवा परियोजना, रानी अवंती बाई सागर, रातापानी व घोड़ापछाड़ परियोजना में सिंचाई भौतिक प्रणाली, कृषि प्रणाली, सामाजिक आर्थिक प्रणाली व संगठनात्मक प्रणाली आदि पर वस्तुनिष्ठ अध्ययन कर उसके सुधार हेतु शासन को सुझाव दिये गये।